गुरुकुल मैथिलीशरण गुप्त 1. गुरु नानक मिल सकता है किसी जाति को आत्मबोध से ही चैतन्य ; नानक-सा उद्बोधक पाकर हुआ पंचनद पुनरपि धन्य । साधे सिख गुरुओं ने अपने दोनों लोक सहज-सज्ञान; वर्त्तमान के साथ सुधी जन करते हैं भावी का ध्यान । हुआ उचित ही वेदीकुल में प्रथम प्रतिष्टित गुरु का वंश; निश्चय नानक में विशेष था उसी अकाल पुरुष का अंश; सार्थक था 'कल्याण' जनक वह, हुआ तभी तो यह गुरुलाभ; 'तृप्ता' हुई वस्तुत: जननी पाकर ऐसा धन अमिताभ । पन्द्रहसौ छब्बीस विक्रमी संवत् का वह कातिक मास, जन्म समय है गुरु नानक का,- जो है प्रकृत परिष्कृति-वास । जन-तनु-तृप्ति-हेतु धरती ने दिया इक्षुरस युत बहु धान्य; मनस्तृप्ति कर सुत माता ने प्रकट किया यह विदित वदान्य । पाने लगा निरन्तर वय के साथ बोध भी वह मतिमंत; संवेदन आरंभ और है आतम-निवेदन जिसका अन्त । आत्मबोध पाकर नानक को रहता कैसे पर का भान ? तृप्ति लाभ करते वे बहुधा देकर सन्त जनों को दान । खेत चरे जाते थे उनके, गाते थे वे हर्ष समेत- "भर भर पेट चुगो री चिड़ियो, हरि की चिड़ियां, हरि के खेत !'' वे गृह...
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